अजीब सी खामोशी के साथ धीमी बरसात है
शायद आज फिर से एक लम्बी रात है
निहारती हैं एक टक आँखे बाहर के मौसम को,
फिर से याद आ रही किसी मौसम की हर बात है
वो सुरूर मोहब्बत का, वो आँखों की प्यास
वो बेताब धड़कने, वो मिलने की आस
वो तन्हाईयों में अक्सर उनकी तस्वीर से बातें,
उनसे आँखे टकराने पर वो अजीब सा एहसास
उनके खयालो से मेरा दिल महकता था हर पल
उनके दिखने से मेरे खुशियों में होती थी हलचल
एक झलक के लिए पागल हम कोई अकेले नहीं थे
देख के मौसम को मौसम भी हो जाता था चंचल
जिंदगी खुश थी और मौसम खुशगवार था
पर शायद इतनी खुशियों से वक़्त को इंकार था
जाने क्या सोच कर ठुकरा दिया मौसम ने मुझे
मेरे सामने तो बस सवालों का अंबार था
मौसम में कई नए फूल खिलने लगे थे
जैसे तैसे हम अपने ज़ख्म सिलने लगे थे
अब मौसम के दिल का कुमार कोई और था
कई सवालों के जवाब भी हमे मिलने लगे थे
खैर!!
अब बहुत दूर हो चुके हैं अपनी जिंदगी के रास्ते
शायद दर्द भी ढल जाये यूँ ही आस्ते आस्ते
जाने क्यूँ समझ नहीं पाया इस छोटी सी बात को
अरे! मौसम तो होता ही है बदलने के वास्ते …