Tuesday, June 8, 2010

मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा

मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा,
अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा!

यह एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा,
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा!

मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा,
कोई चिराग नहीं हूँ जो फिर जला लेगा !

कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए,
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा!

मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे,
सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी वो सब जला लेगा!

हज़ार तोड़ के आ जाऊं उस से रिश्ता "सौरभ",
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा!

No comments:

Post a Comment