Sunday, August 6, 2017

दीदी

दीदी,
सुबह की नींद से मुझे जगा देना,
ना उठूँ तो एक थप्पड़ भी लगा देना,
मुझे देर से स्कूल जाना पसन्द नहीं,
दीदी, तू बस मुझे जगा देना।

और हाँ, मेरा बस्ता भी सजा देना,
टिफ़िन बॉक्स और पानी की बोतल भी डाल देना,
मुझे भूखे रहना पसन्द नहीं,
दीदी, तू बस सुबह मुझे खिला देना।

दीदी, मेरा होम वर्क भी बना देना,
मेरी कॉपी में ड्राइंग भी बना देना,
मुझे सेकण्ड आना पसन्द नहीं,
दीदी, तू बस मुझे पढ़ा देना।

दीदी, मुझे जल्दी सोने की परमिशन दिलवा देना,
और मेरे बाल सहला कर सुला भी देना,
मुझे ठंढ से कंपकपाना पसन्द नहीं,
दीदी, तू बस मुझे चादर ओढ़ा देना।

दीदी....
अब न वो नींद है,  ना वो बस्ते हैं,
मंज़िल की चाहत है और अनजान रस्ते हैं,
मुझे आपसे दूर रहना पसन्द नहीं,
दीदी, तू बस हौसला देते रहना।

दीदी, मुझमे उड़ने की ताक़त भर देना,
और गर चोट लगे तो मरहम लगा देना,
मुझे कभी  थकना पसन्द नहीं,
दीदी, तू बस मेरा साथ देते रहना।

मेरी प्यारी दीदी
                                                   आपका सौरभ

Thursday, October 27, 2016

क्या जलाऊँ???

क्या जलाऊँ???

तम को चीरने के लिए रौशनी के दिए जलाऊँ
या  दुश्मन की छाती पर कोई बम फोड़ आऊँ?
अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुँचाऊँ, पीड़ितों को न्याय दिलवाऊँ
या फिर अपना कर्तव्य निभाऊँ...
पर, आज इतनी तो तमन्ना ज़रूर है कि,
अन्धकार से भरी इस दुनिया में,मैं एक मशाल जलाऊँ ।

जब भूख से आवाज़ आनी बन्द हो जाये,
मैं उन सभी के लिए चूल्हे की लौ जलाऊँ
जिन बाजुओं में बल न हो, मैं उनका सम्बल बन जाऊँ,
जो भटक गये हैं रास्ते चलते चलते, या थक गए हैं मंज़िल की तलाश में,
मैं हर उस मुसाफिर के लिए आशा की किरण बन जाऊं,
आज इतनी तो तमन्ना ज़रूर है कि,
अन्धकार से भरी इस दुनिया में,मैं एक मशाल जलाऊँ ।

कभी रोऊँ, मुस्कुराऊँ, हँसू, नाचूँ या गाऊँ,
पर, मैं हर पल जीने की लौ जलाऊँ,
ज़िन्दगी से हताश, उदास और खिन्न लोगों के जीवन में,
जीने की एक नई अलख जगाऊँ,
आज इतनी तो तमन्ना ज़रूर है कि,
अन्धकार से भरी इस दुनिया में, मैं एक मशाल जलाऊँ ।

चलो एक दिया जला ही दिया जाये, ये अंधियार भगा ही दिया जाये,
जो सो रहे हैं, उन्हें जगा ही दिया जाये, उन्हें भी मार्ग पर ला ही दिया जाये,
इस दीपावली, कुछ जले न जले, सबके घर दो वक़्त चूल्हा जला ही दिया जाये।
अन्धकार से भरी इस दुनिया में, एक मशाल जला ही दिया जाये ।


Thursday, February 12, 2015

मैं हिन्दु भी हूँ, और मुसलमान भी हूँ...


मैं हिन्दु भी हूँ, और मुसलमान भी हूँ,
पर सबसे पहले एक इंसान भी हूँ !

मुझे वस्ता है तो सिर्फ इंसानियत का,
इन मज़हबी दंगों से मैं  परेशान भी हूँ !!
भाईचारे की जगह , जब आँखों में नफरत का जुनून दिखता है,
मुझे दर्द होता है जब इंसान का खून बहता है!
मेरी कोशिश है तो बस शान्ति फैलाने की,
मुझे तो मानव सेवा में  ही सुकून मिलता है !!

मैं चुनाव में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता हूँ,
पर धर्म के नाम पर होने वाली राजनीति से दूर रहता हूँ!

मेरी कोशिश,  केसरिया और हरे को सफ़ेद से जोड़ने  की है,
मैं चक्र की तरह सदैव प्रगतिशील रहता हूँ!!

मैं हिन्दु भी हूँ, और मुसलमान भी हूँ...

Thursday, August 28, 2014

जागृति यात्रा की कुछ झलकियाँ (Few glimpses of Jagriti Yatra)

जागृति  यात्रा की कुछ झलकियाँ , जो कैमरे में कैद थी, को एक जीवंत रूप प्रदान कर रहा हूँ :) ताकि  इसे आप लोग हमेशा देख कर अपनी यादें ताज़ा कर सकें :)

https://www.youtube.com/watch?v=Wx4VP_aPadg

Saturday, October 5, 2013

Pyar main tumse karti hu…

Phul jo khila wo murjha bhi gaya,
Wo paas to aaya  par  uljha bhi gaya,
Kitna bhi chahu par suljha na pati hu,
Wo dur gaya to dil chura le gaya.

Yaad hai wo pal jab mili thi pahli baar,
Mere mann mein bhi bahene lagi thi thandi bayaar,
Ek teer sa ake chubha mere dil ke aar paar,
Baat ye thi ki mujhe aa gaya tha tujhpe pyar.

Tujhe dekhkar hi mere dil ko aata tha karar,
Jee karta tha dekhti rahu tujhe baar baar,
Tum the ki milne bhi aaye nahi ek baar,
Aur main palak pawerein bichay kar rahi thi tera intezaar.

Din gujarte rahe waqt aage bada,
Aur humara pyar bhi apne parwan chada,
Duriyaan simatti gayi, nazdikiyaan badti gayi,
Par haye ye waqt fir humare samne khada.

Pyar ka sawan beet chuka tha ab patjhar ki bari thi,
Saath gujre lamhe beete bicharne ki ab bari thi,
Main bechari asamanjas, tumhe rok bhi naa payi,
Hansi- khushi mein din the beete, rone ki ab bari thi.

Tumko aage hi badna tha, aasman pe chadna tha,
Yahi soch thi mann mein mere, mann mein tera sapna tha,
Yahi duaa hai rabb se meri tujhko aage lee jaye,
Tu mera hoga ek din yahi mera bhi kahana tha

Aas lagaye baithi hu, raah teri main takti hu,
Laakh chupayun chup nap aye,
Pyar main tumse karti hu
Pyar main tumse karti hu…

Wednesday, February 6, 2013

कैसे मैं जी पाया हूँ ?

दिल के जितना पास गया हूँ , खुद को ही उलझाया हूँ,

मीठी मीठी बातों से बस, यूँ ही मन बहलाया  हूँ,

प्रेम डोर में बंधे हुए , इस दीवाने की  व्यथा सुनो, 

विरह - वेदना को सह कर , कैसे  मैं जी पाया  हूँ ?




[

Dil ke jitna paas gaya,khud ko hi uljhaya hoon.

Meethi meethi baaton se bas,yu hi Mann bahlaya hoon.

Prem dor me bandhe hue is deewane ki vyatha suno

Virah vedna ko sah kar ,Kaise main Jee paya hoon ?


 ]

Saturday, October 6, 2012

एक और बरस गुज़र गया...


 तेरे पास आते आते , तेरी बाँहों में समाते ,
तेरी गेशुओ के साये में खुद ही उलझ जाते,
की तुम जो रूठती थी तो हम तुम्हे मानते,
अब वक़्त आ गया है , तुम खुद ही मान जाते!

तेरी ख़ामोश पलकें , पलकों के तराने ,
तेरी आँखों की मस्तियाँ, वो रंगीन नज़राने ,
कि  जब से देखा उनको हो गए तेरे दीवाने ,
अब वक़्त आ गया है ,लिखूं उन पर फ़साने ,

तेरी चाहतों के दिए, दिल में जलते रहे हमेशा,
दिखाई तुने मुझको जीवन की सही दिशा ,
उलझी हुई ज़िन्दगी को दी तुने परिभाषा ,
अब वक़्त आ गया है , उकेरूँ  तेरा नक्शा !

तेरी बहूँ के दरमियाँ , खुशियों को चूमते हम,
तेरी आँखों में अपने प्यारे सपनों को बुनते हम,
हर सीपियों को खोलते, मोती को ढूंढ़ते हम,
अब वक़्त आ गया है , मंजिल को बढ़ते हम ...

एक और बरस गुज़र गया ......


Monday, August 22, 2011

आदमी भी क्या अनोखा जीव है


रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव है ।
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है ।
जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते ।
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।
आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का
आज उठता और कल फिर फूट जाता है ।
किन्तु, फिर भी धन्य ठहरा आदमी ही तो
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है ।
मैं न बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली,
देख फिर से चाँद! मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी,
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?
मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाता हूँ ।
और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की,
इस तरह दीवार फौलादी उठाता हूँ ।
मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है ।
वाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।
स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे
रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे ।
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।

Wednesday, August 17, 2011

वेदना जनता क्यूँ सहती है ???

बोल दिल्ली , तू तो रानी बन गयी ,
वेदना जनता क्यूँ सहती है ,
सबके भाग्य दबा रखे हैं ,
तुने अपने कर में ,
उतरी थी जो विभा स्वर्ग से, 
हुई वन्दिनी किस घर में ???

Saturday, August 6, 2011

दोस्ती फ़र्ज़ है उम्र भर निभाने का


दोस्ती  नाम  है  सुख -दुःख  के  अफ़साने  का .

यह  राज़  है  सदा  मुस्कुराने  का .

यह  पल  दो  पल  की  रिश्तेदारी  नहीं .

यह  तो  फ़र्ज़  है  उम्र  भर  निभाने  का 



ज़िन्दगी   में  आकर  कभी  ना  वापस  जाने  का .

नजाने  क्यों  एक  अजीब  सी  डोर  में बन्ध जाने  का .

इसमें  होती  नहीं  हैं  शर्तें .

यह  तो  नाम  है  खुद  एक  शर्त  में  बन्ध  जाने  का .


यह  तो  फ़र्ज़  है  उम्र  भर  निभाने  का 



दोस्ती  दर्द  नहीं  रोने  रुलाने  का .

यह  तो  अरमान  है  एक  ख़ुशी  के  आशियाने  का .

इसे  काँटा  ना   समझना  कोई .

यह  तो  फूल  है  ज़िन्दगी  की  राहों  को  महकाने  का .

यह  तो  फ़र्ज़  है  उम्र  भर  निभाने  का 


दोस्ती  नाम  है  दोस्तों  में  खुशिया  बिखेर    जाने  का .

आँखों   के  आंसुओं  को  नूर  में  बदल  जाने  का .

यह  तो  अपनी  ही  तकदीर  में  लिखी  होती  है .

धीरे -धीरे  खुद  अफसाना  बन  जाती  है  ज़माने  का .

                                         यह  तो  फ़र्ज़  है  उम्र  भर  निभाने  का


दोस्ती  नाम  है  कुछ  खोकर  भी  सब  कुछ  पाने  का .

खुद  रोकर  भी  अपने  दोस्त  को  हँसाने  का .

इसमें  प्यार  भी  है  और  तकरार  भी .

दोस्ती  तो   नाम  है  उस  तकरार  में  भी  अपने  यार  को  मनाने  का .

यह  तो  फ़र्ज़  है  उम्र  भर  निभाने  का

                                       

यह  तो  फ़र्ज़  है  उम्र  भर  निभाने  का !!!


Friday, August 5, 2011

The Lady I Adore


I sat quite lonely,weeping for solace...
She came with alacrity,a soothing embrace..
she wiped my tears and sang jovial songs..
And I thought shez singer, To God she belongs..

I sat quite baffled, holding my brush and paint...
She came with a grace,refined yet so quaint....
she took my hand in her's and made me draw..
and I thought shez an artist, a beauty so raw...

I sat quite grim, strings in my hand...
she came with an aura,holding magic wand...
She sat beside me, thought me guitar....
and I thought shez virtuoso, A shining star...

I sat quite sombre, In dark disdain....
she came witha spark, relieving my pain....
She looked with innocence, chuckled my cheek...
And I thought shez a child, divine..cute and meek...

I sat quite tempted, Desires deep down,,,
She came with a gaze, sensuality around...
Her intoxicating aroma , Enticed every pore....
And I thought shez a lady, The lady I adore..

Thursday, July 28, 2011

जब हम मिल जाते हैं

मुख की बातें सब सुनते हैं ,दिल का दर्द है जाने कौन ???
आवाज़ों के बाज़ारों में ,ख़ामोशी पहचाने कौन ???
अपनी मंजिल की तलाश में दूर - दूर हम रहते हैं ,
लेकिन जब हम मिल जाते हैं , हो जाते हैं जाने कौन !!!

Wednesday, July 27, 2011

बस आपके पास फुर्सत हो ...

सिखा देती हैं चलना ठोकरें , बस सिखने की हसरत हो ,
कही तो कोई होगा जिसे अपनी भी जरुरत हो ,
हरेक बाज़ी  में दिल का हार हो ऐसा नहीं होता ,
खुशियाँ बिखरी हैं  हर तरफ आपके, बस आपके पास फुर्सत हो ...

Tuesday, May 17, 2011

What Good Is Love------by Sass

I waited for your love in hope,
That ours would come again,
And make me feel the things I felt,
When we were one, back then.

But time and distance have erased,
The things I wished anew,
And now I find myself alone,
Though I am here with you.

What good is love, that does not touch,
What good is love, that gives you pain.
What good is love, that makes you run,
And makes you lost out in the rain.

I traveled to another world,
Out far beyond the one we knew,
I thought that I could live again,
And now I find I'm back with you.

But what of hearts that beat as one,
And what of passion and embrace,
Is it too much to ask of you,
To make these tears of mine erase.

What good is love, that does not touch,
What good is love, that gives you pain.
What good is love, that makes you run,
And makes you lost out in the rain.

Too painful this - to journey back,
To times of love and laughter free,
The times we lay together with
A sense of you , a sense of me.

So now, I journey on alone,
Forever wandering, in my thoughts,
And I shall ask you once again,
What good is love.

Why Do I?----by Liza Marie


Why do I smile at the sound of your voice?
Why do I let you take over me as if I had no choice?
Why do I let you touch me in places never touched?
Why do I like to have you around so much?

Why do I melt at the tenderness of your kiss?
Why do I feel like I could live forever like this?
Why do I put my heart in your hands?
Why do I answer to your every demand?

Why do I tell you leaving me is not your wrong?
Why do I let you know with out you I'm not quite as strong?
Why do I take you back even though I know it's not right?
Why do I feel like I should please you by not putting up a fight?

Why do I care about you even though you hurt me?
Why do I turn my head from what's plain reality?
Why do I try to hide from what is true?
Why do I still have these feelings for you?

Sunday, April 17, 2011

हम ज़िन्दगी का गीत गाते रहे

कभी हँसी को ख़ुशी का पैमाना बनाया ,
तो कभी ख़ामोशी से ग़म को छुपाते रहे !

कुछ दर्द बाहर तो आये मगर ,
कुछ को सीने में दबाते रहे !

छलकते अगर आँसु तो  ग़म धुल जाते ,
सो अश्कों से ही प्यास को बुझाते रहे !

जिसके जितना ही पास गए ,
सिर्फ वही हमसे दूर जाते रहे !

कुछ फरिश्तों ने बाहर से चोट पहुँचायी,
तो कुछ अन्दर ही अन्दर दिल दुखाते  रहे !

फिर भी हम हँसते रहे , मुस्कुराते रहे ,
और ज़िन्दगी का गीत गाते रहे !

हम ज़िन्दगी का गीत गाते रहे !!!


Sunday, April 10, 2011

समंदर हूँ

मैं भीड़ में घिरा तनहाइयों का समंदर हूँ ,
मैं उस शुतुरमुर्ग की तरह रेत के अन्दर हूँ  ............