" तेरी बेवफाई को उस वफ़ा के साथ निभाएंगे,
कि तेरी आँखों से भी आंसू निकल जायेंगे ,
ये वादा है हमारा की हम तुझे उस मोड़ तक लायेंगे,
जहा हम अपना दर्द तेरी आँखों से छलकाके दिखायेंगे !!! "
तराशेंगे इसे सजायेंगे किसी मूरत की तरह ,
कभी तो ज़िन्दगी, ये अपनी भी सँवर जाएगी !
हमने तो कभी किसी का भी बुरा नहीं किया ,
कभी तो आदत हमारी भी , ख़ुदा को रास आएगी !
नहीं मांगी कभी मोहलत हमने वफ़ा को निभाने की ,
कभी तो बेवफा भी , हमसे वफ़ा कर जाएगी !
नहीं की हमने कभी दुआ कहीं किसी को पाने की,
कभी तो मौत आकर हमें गले अपने लगाएगी !
है नासूर अगर ये जखम तो हम भी बने पत्थर ,
कभी तो जान में हमारी किसी की जान आएगी !
तड़पता हूँ मैं मिलने को मगर मैं मिल नहीं सकता ,
कि एक दिन ये खुदाई खुद मुझे उससे मिलाएगी !
मैं हूँ अजनबी “सौरभ ” कहीं भटकता ही रहता हूँ ,
कभी तो मंजिल मेरी भी कहीं मुकाम पायेगी !
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