Thursday, July 8, 2010

ज़िन्दगी, ये अपनी भी सँवर जाएगी !


" तेरी  बेवफाई  को  उस  वफ़ा  के  साथ  निभाएंगे,  
कि  तेरी  आँखों   से  भी  आंसू  निकल  जायेंगे ,
ये  वादा  है  हमारा  की  हम  तुझे   उस  मोड़  तक  लायेंगे,  
जहा  हम   अपना  दर्द  तेरी  आँखों  से  छलकाके  दिखायेंगे !!! "

तराशेंगे  इसे  सजायेंगे  किसी  मूरत  की  तरह  ,
कभी  तो  ज़िन्दगी, ये  अपनी  भी  सँवर  जाएगी  !

हमने  तो  कभी  किसी  का  भी  बुरा  नहीं  किया ,
कभी  तो  आदत  हमारी  भी , ख़ुदा को  रास  आएगी   !

नहीं  मांगी  कभी  मोहलत  हमने  वफ़ा  को  निभाने  की , 
कभी  तो  बेवफा  भी , हमसे  वफ़ा  कर  जाएगी  !

नहीं  की  हमने  कभी  दुआ  कहीं  किसी  को  पाने  की,  
कभी  तो  मौत  आकर  हमें  गले  अपने  लगाएगी !

है  नासूर  अगर  ये  जखम  तो  हम  भी  बने  पत्थर  ,
कभी  तो  जान  में  हमारी  किसी  की  जान  आएगी  !

तड़पता  हूँ   मैं  मिलने  को  मगर  मैं  मिल  नहीं  सकता , 
कि  एक  दिन  ये  खुदाई  खुद  मुझे  उससे  मिलाएगी !

मैं  हूँ  अजनबी  “सौरभ ” कहीं  भटकता  ही  रहता  हूँ  ,
कभी  तो  मंजिल  मेरी  भी  कहीं  मुकाम  पायेगी  !

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