Sunday, October 17, 2010

रुह-ओ-जान हो गया है

हमे वो मिला था युँ ही दोस्त बन के ,
घडी दो घडी में ये क्या हो गया है ,
कदम दो कदम साथ उसके चला तो ,
लगा रास्ता खुद मन्ज़िल हो गया है ,
भटकता रहा था युँ ही बेवजह मैं ,
मुझे क्या खबर, मेरा भी आशियांन हो गया है ,
कोई तो है जिसका मैं हो गया हूँ
कोई तो है जो बस मेरा हो गया है
ना अफसोस कोई ना कोई शिकायत ,
ना जख्मो की चिन्ता , ना कोई बगावत
ना उलझन कोई ना कोई है तुफान
तस्ववर में बनती है तस्वीर कोई
ख्यालों में भी बस नजर आये वो ही
था दिल की धडकन अब रुह-ओ-जान हो गया है
हर एक लम्हें जो साथ उसके बिताये
हर पल में हमको वो है याद आये
वो लम्हें थे रोशन या था नूर उसका
थे दो वो समन्दर या थे नैन उसके
युँ ही हमने उसको कहा जिन्दगी था
वो कहते ही कहते खुदा हो गया है

No comments:

Post a Comment