Sunday, March 6, 2011

उस राह के मुसाफिर थे बहुत


मैं  जिस  राह   पे  खड़ी थी ,
उस  राह   के  मुसाफिर  थे  बहुत !

मैंने  समझा  था  मैं  तनहा  रह  लुंगी ,
पर   मेरी  किस्मत  में  कांटे   थे  बहुत !

मैं  चलती  रही  पैर  थकते  रहे ,
मैंने   चुने  रस्ते  ऐसे  थे  बहुत !

जिन तकलीफों   ने   दामन दुखों  से  भर  दिया ,
आज उन तकलीफों  के साथ हैं हम वाबस्ता बहुत !

आओ किसी दिन देखो मुझे टूट के बिखर गयी हूँ ,
किये थे वादे जिसने साथ निभाने के बहुत !

तुम बिन ना कुछ हूँ ना रहुँगी,
आज भी तुम बिन हूँ मैं  अधुरी बहुत !!!

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