मैं जिस राह पे खड़ी थी ,
उस राह के मुसाफिर थे बहुत !
मैंने समझा था मैं तनहा रह लुंगी ,
पर मेरी किस्मत में कांटे थे बहुत !
मैं चलती रही पैर थकते रहे ,
मैंने चुने रस्ते ऐसे थे बहुत !
जिन तकलीफों ने दामन दुखों से भर दिया ,
आज उन तकलीफों के साथ हैं हम वाबस्ता बहुत !
आओ किसी दिन देखो मुझे टूट के बिखर गयी हूँ ,
किये थे वादे जिसने साथ निभाने के बहुत !
तुम बिन ना कुछ हूँ ना रहुँगी,
आज भी तुम बिन हूँ मैं अधुरी बहुत !!!
No comments:
Post a Comment